ज्योतिष में ग्रहों की दशा और दिशा का जीवन पर प्रभाव

ग्रहों की दशा क्या होती है?
दशा का मतलब होता है – किसी ग्रह का विशेष समय या काल। जब कोई ग्रह हमारे जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहा होता है, तो उस काल को उस ग्रह की महादशा कहते हैं। कुल 9 ग्रह होते हैं और हर ग्रह की महादशा का एक निर्धारित समय होता है:
ग्रह | महादशा की अवधि |
---|---|
सूर्य | 6 वर्ष |
चंद्रमा | 10 वर्ष |
मंगल | 7 वर्ष |
बुध | 17 वर्ष |
गुरु (बृहस्पति) | 16 वर्ष |
शुक्र | 20 वर्ष |
शनि | 19 वर्ष |
राहु | 18 वर्ष |
केतु | 7 वर्ष |
हर महादशा के अंदर अंतरदशा (Antardasha) और प्रत्यंतर दशा (Pratyantardasha) होती है, जो और सूक्ष्म स्तर पर जीवन को प्रभावित करती हैं।
दशा का जीवन पर प्रभाव कैसे पड़ता है?
किसी भी ग्रह की महादशा में उस ग्रह का स्वभाव, उसकी स्थिति (शुभ या अशुभ), और वह ग्रह किन भावों का स्वामी है – यह सभी बातें व्यक्ति के जीवन को गहराई से प्रभावित करती हैं।
उदाहरण:
यदि बुध की महादशा चल रही है और बुध लग्न में स्थित होकर पंचम भाव (बुद्धि, शिक्षा) का स्वामी है, तो इस समय में व्यक्ति को शिक्षा, व्यापार, लेखन, या संवाद से जुड़े क्षेत्रों में सफलता मिलेगी।
वहीं यदि शनि की महादशा में वह छठे या आठवें भाव में हो, तो संघर्ष, रोग या मानसिक तनाव का समय हो सकता है।
ग्रहों की दिशा (गोचर) क्या होती है?
गोचर (Transit) का अर्थ है – जब ग्रह आकाश में अपनी चाल से किसी राशि से गुजरता है। यह चाल नियमित होती है, जैसे:
सूर्य हर माह राशि बदलता है
चंद्रमा हर ढाई दिन में
शनि लगभग ढाई साल में एक राशि में रहता है
गोचर वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति दर्शाता है और जब यह आपकी कुंडली के ग्रहों से संपर्क करते हैं, तो जीवन में बदलाव लाते हैं।
गोचर का प्रभाव
गोचर यह दर्शाता है कि वर्तमान समय में कौन-से ग्रह हमें सहयोग दे रहे हैं और कौन-से बाधाएं उत्पन्न कर सकते हैं।
उदाहरण:
शनि की साढ़े साती: जब शनि जन्म चंद्रमा से 12वीं, 1वीं या 2वीं राशि में आता है, तब यह काल साढ़े साती कहलाता है, जो जीवन में कड़ी परीक्षा और बदलाव लाता है।
गुरु का गोचर: जब बृहस्पति शुभ भावों से गुजरता है (जैसे पंचम, नवम या एकादश), तब यह ज्ञान, विवाह, संतान और धन की दृष्टि से शुभफल देता है।
ग्रहों की दशा और दिशा का संयुक्त प्रभाव
जब किसी ग्रह की महादशा और उसी ग्रह का गोचर भी सक्रिय हो, तो उसका प्रभाव बहुत तीव्र होता है। यदि ग्रह शुभ है, तो उन्नति, धन प्राप्ति, विवाह, विदेश यात्रा जैसे योग बनते हैं। लेकिन अगर वही ग्रह नीच का हो या अशुभ स्थान में हो, तो परेशानी, हानि या बीमारी का समय भी हो सकता है।
उदाहरण:
अगर किसी की शुक्र की महादशा चल रही है और उसी समय शुक्र का गोचर द्वादश भाव (हानि भाव) में हो, तो प्रेम संबंधों में परेशानी, खर्चों की अधिकता या वैवाहिक जीवन में तनाव हो सकता है।
जीवन के प्रमुख क्षेत्रों पर असर
क्षेत्र | प्रभावित ग्रह / दशा |
---|---|
विवाह | शुक्र, गुरु, सप्तम भाव की दशा |
करियर | सूर्य, शनि, दशम भाव के ग्रह |
धन | द्वितीय और एकादश भाव की दशा |
शिक्षा | पंचम भाव, बुध, गुरु |
स्वास्थ्य | छठा, आठवां भाव, शनि, मंगल |
ज्योतिषीय उपाय – दशा-दिशा को कैसे संतुलित करें?
मंत्र जाप – जिस ग्रह की दशा चल रही है, उसका बीज मंत्र नियमित जपें।
जैसे – “ॐ शं शनैश्चराय नमः”, “ॐ बुधाय नमः”दान और व्रत – संबंधित ग्रह को प्रसन्न करने हेतु उपवास, रंगीन वस्त्र, धातु, तिल, गुड़ आदि का दान करें।
रत्न धारण – योग्य ज्योतिषी की सलाह से रत्न जैसे पन्ना, नीलम, पुखराज आदि धारण करें।
सकारात्मक कर्म – अशुभ दशा में संयम, सेवा, संयमित वाणी और अच्छे कर्मों से ग्रहों का प्रभाव नरम किया जा सकता है।
निष्कर्ष
ज्योतिष में ग्रहों की दशा और दिशा हमारे जीवन की लय और दिशा को तय करने में बेहद महत्वपूर्ण होती हैं। यह हमें यह समझने में मदद करती हैं कि जीवन में कब आगे बढ़ना है, कब रुकना है और कब सतर्क रहना है।
यदि आप भी अपने जीवन में बार-बार बाधाओं, मानसिक तनाव या असमंजस का अनुभव कर रहे हैं, तो संभव है कि आपके ग्रहों की दशा और गोचर में कोई विशेष प्रभाव चल रहा हो।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी आपकी जन्मकुंडली का गहन विश्लेषण करके, दशा और दिशा के आधार पर सटीक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनके अनुभवी परामर्श से आप अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।